Friday 19 September 2014

लोग कहते हैं बहुत सुन्दर घर बनाया है


इंटे जोड़ी थी, ख़ून का सीमेंट लगाया था,
फिर वक़्त की तराई की थी, और एहसास का पलस्तर लगाया था,
फ़र्श के नीचे दर्द को दबाया था, आँसुओं से फ़र्श चमकाया था,
दीवारों पर ख़ुशी के रँग बिखेरने की चाहत की थी,
पलकों के दरवाज़े लगाये हैं,
सिसकती ख्वाहिशों के परदे टाँगे हैं,
और एक घर बनाया है, एक सपना बहुत पुराना सजाया है,

जब तक घर बनाया, कितने अरमान थकावट के पलंग पर सो गए,
कब इन आँखों के सपने खो गए,
और फिर हर साल ज़िन्दगी से रँग चुराकर दीवारों पर करवाया है,
आशियाँ बनाते बनाते इस दिल के घर का नज़रबट्टू लगाया है,

अपने दर्द को पिरोकर एक माला बनाई थी,
घर के मंदिर में टंगी है अभी,
कुछ बीमारियों की ख़ूबसूरत टाइल्स लगायी हैं,
कुछ नकली सी हँसी के हैंडल दरवाज़ों पर लगे हैं जो चमकते हैं,
भूली बिसरी यादोँ की चिटकनियाँ लगायी हैं,
एक डर से बना हुआ बहुत ऊँचा मज़बूत गेट लगाया है,
जहाँ से इंसानियत अंदर झाँक न सके ऐसा बनाया है,

 चेहरे की झुर्रियों की कुछ सीढ़ियाँ बनाई हैं,
अपने सफ़ेद बालों की ग्रिल लगाई है,
अपने खोये हुए वक़्त की टंकियाँ छत पर पानी स्टोर करने के लिए लगायी हैं,
आस का सुन्दर फ़र्नीचर है पूरे घर में,
बिजली के कनैक्शन के लिए पापा का डैथ सर्टिफिकेट लगाया है,
पानी के कनैक्शन के लिए माँ का डैथ सर्टिफिकेट लगाया है,

















और गली से गुज़रते लोग यही कहते हैं,
घर बहुत सुन्दर बनाया है,
हाँ , घर बहुत सुन्दर बनाया है,
इंसानियत की भेट चढ़ाया है,
हाँ , मैंने एक बहुत सुन्दर घर बनाया है I